এক সময়ে বাঙালির কবীরকে নিয়ে আগ্রহ ছিল। হয় তো তার জন্যে কিছুটা দায়ী রবীন্দ্রনাথের অনুবাদ। রবীন্দ্রনাথের আজীবন আগ্রহ। ক্ষিতিমোহন সেনের কবীরের দোঁহার সংগ্রহ। আজ কতটা আছে জানি না।
আমার বারবার মনে হয় লালনের মত কবীরের অনুভবের সঙ্গে পরিচিত হওয়া দরকার। কবীরের দর্শনে এমন অনেক কথা আছে যা আজকেও ভীষণভাবে প্রাসঙ্গিক। সেই দর্শনকে শুদ্ধভাবে নিয়ে আসার কাজ যিনি আজ অত্যন্ত নিষ্ঠার সঙ্গে করে চলেছেন তিনি আমার অত্যন্ত শ্রদ্ধার মানুষ Purushottam Agrawal । তাঁর শেষ প্রকাশিত বই কবীর (ইংরেজিতে) আমার মত বহু কবীর অনুরাগী মানুষকে মুগ্ধ করেছে। তার আগে আরেকটা বই ছিল কবীরজীকে নিয়ে হিন্দিতে, "অকথ কাহানি প্রেমকি"। হাজারিপ্রসাদ দ্বিবেদির লেখা কবীরের বইটার উপর এই বইদুটো মনে হয় ভীষণ অথেন্টিক।
এখনও তিনি অক্লান্ত কাজ করে চলেছেন কবীরকে নিয়ে। কবীরকে নিয়ে লেখা একটি বই যা ১৯২৮ সালে প্রকাশিত, সেটাকে আবার নতুন করে পরিমার্জন ও সংশোধন করে হিন্দির রাজকমল প্রকাশনের মাধ্যমে আমাদের সামনে আনছেন। কি পর্বতপ্রমাণ এ কাজকে উনি কি নিষ্ঠার সঙ্গে সম্পন্ন করলেন অবশেষে।
কয়েকজন মানুষকে দেখলে ভীষণ আফসোস হয় জীবনে এদের শিষ্যত্ব পেলাম না বলে। নিজেকে বড় বেশি অভাগা মনে হয়। পুরুষোত্তমজী অন্যতম তাঁদের মধ্যে। মনে হয় যদি সম্ভব হত ওঁর শিষ্য হতে। এমনভাবে কবীরের অন্বেষণে ওঁর চেলা হতে।
কবীরের ভারত উদার, মুক্ত দর্শনের কথা বলে। সে বাণীকে সবার সামনে পরিশুদ্ধভাবে আনার দায়িত্বকে এক অত্যন্ত গুরুত্বপূর্ণ দায়িত্ব বলে আমার মনে হয়। বিশেষ করে আজকের দিনে দাঁড়িয়ে।
উনি নিজের কাজটা নিয়ে নিজে কি বলছেন সেটাও তুলে দিলাম ওনার টাইমলাইন থেকে---
"कबीर-ग्रंथावली में कबीर की रचनाओं का सबसे प्राचीन रूप मिलता है, अध्येता कबीर के अध्ययन का मुख्य आधार इसी को मानते हैं।ग्रंथावली नाम 1928 में श्री श्यामसुंदर दास ने दिया था, नागरी प्रचारिणी सभा ने इसे प्रकाशित किया।पांडुलिपि पढ़ने में चूक या प्रूफरीडिंग में लापरवाही के कारण इसमें भयानक भूलें छूट गयीं हैं। ताज्जुब है कि इतनी महत्वपूर्ण पुस्तक के प्रकाशन में नागरी प्रचारिणी सभा ने कतई सावधानी नहीं बरती। ताबड़तोड़ संस्करण प्रकाशित होते गये और अर्थ का अनर्थ करने वाली भूलें बनी ही रहीं। ऐसी सैकड़ो भूलें हैं जिनका अहसास सहज बोध से ही हो जाता है। सैकड़ों ऐसी भी जिनका पता सभा संस्करण के पाठ का आदिग्रंथ, रज्जब और गोपालदास की सर्वंगियों, पंचवाणियों तथा अन्य संकलनों के साथ मिलान करने से लगता है।ताज्जुब यह भी है कि पूरी सदी होने को आई किसी अध्येता ने कबीर अध्ययन के इस आधारभूत स्रोत का पाठ दुरुस्त करने की नहीं सोची। चालीस-पैंतालीस बरस पहले कबीर पर काम शुरु करते ही ‘ग्रंथावली’ के पाठ से मुझे खीझ होती रही कि इस पाठ का संशोधन या परिमार्जन करने की ओर किसी अध्येता ने ध्यान क्यों नहीं दिया। लेकिन, किसी तरह काम चलाया— सहज बोध के सहारे या आगे चल कर प्रकाशित या अप्रकाशित पांडुलिपियों से तुलना करके।
अब यह मेरी व्यक्तिगत समस्या तो नहीं रही लेकिन सही पाठ तक पहुँचने के लिए विविध कबीर-संकलनों की तुलना और पांडुलिपियों से उनका मिलान, ज़ाहिर है कि हर पाठक के लिए संभव नहीं। सो, खीझ तो बनी ही रही, जिस पर Suman Keshari ने दो-एक बार अपने स्वभाव के अनुसार दो टूक कह भी दिया, “ ख़ुद क्यों नहीं करते, यह ज़रूरी काम?”
कोई तीन बरस पहले, इसी खीझ को सुनते हुए Rajkamal Prakashan Samuh श्री अशोक महेश्वरी ने भी यही बात कही, “ आप स्वयं कीजिए ग्रंथावली के पाठ का परिमार्जन,ज़रूरी संशोधन…”
और भी काम लगे ही रहते हैं, लगे ही हुए हैं, लेकिन वक्त अब कम बचा है, ऐसे में प्राथमिकताएँ स्पष्ट होनी चाहिएँ, लगा कि यह काम अब और नहीं टाला जा सकता। कब तक बस खीझता रहूँगा? कब तक छात्र और अन्य पाठक ग़लतियों से भरपूर संस्करण से काम चलाते रहेंगे? सो, सारी व्यस्तताओं के साथ ही इस काम में लग गया। कोई डेढ़-दो साल की मेहनत के बाद अब पाठ संशोधन पूरा हो चला। आधार रहीं हैं पंचबानियाँ, सर्वंगियाँ, आदिग्रंथ औेर फतेहपुर पांडुलिपि। डॉ. श्यामसुंदर दास, डॉ. रामकुमार वर्मा, डॉ. माताप्रसाद गुप्त को कृतज्ञता के साथ याद करते हुए; डॉ. शुकदेव सिंह और विनांद कैल्वर्त, डेविड लोरेंजन जैसे पाठ ( टेक्स्ट) आधारित काम करने वालों विद्वानों के काम में कुछ जोड़ पाने का अहसास लिए काम लगभग पूरा हो जाने का संतोष है। मैं अपना वर्क इन प्रोग्रेस आम तौर से सोशल मीडिया के जरिए आपके सामने नहीं रखता। अभी भी मेरा ध्यान कुछ ही देर पहले सुमन के खींचे हुए फोटो पर गया, अच्छा ही है कि मित्रों को सूचना मिली।
अगले सप्ताह पांडुलिपि राजकमल प्रकाशन के हवाले होगी एक लंबे से प्राक्कथन के साथ, जो आशा है आपको रोचक, विचारोत्तेजक लगेगा। उम्मीद है कि कबीर-ग्रंथावली का यह संस्करण कुछ ही महीनों में आपके सामने होगा।"
আমার শ্রদ্ধা ও প্রণাম আপনাকে, এই অনলস সাধনার জন্য, যা ভাবী প্রজন্মকে আপনার কাছে ঋণী রাখবে।