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उस दिन उस इंसान ने महसूस किया था

            के चलते हुये कांटा कहा चुभ रहा है

        नंगे पैर इस देशके मिट्टी पे चलते चलते

     हर घर जाके कहा था

            "ये नफरत मिटाना है"

        दोनों हातो से मिल गये रामनाम

          " ईश्वर अल्ला तेरे नाम "

                 साथ मे प्रार्थना सुमति का

                      " सब को सन्मति दे भगबान "

"कांटे को मत निकालो "

      गरज उठा तीन बुलेट...

ये सब कभी ख़तम होनेबाली इतिहास है

जो आज फिरसे आमने सामने है

     वही धोती, वही लाठी, वही चस्मा, वही दुबला लेकिन       मजबूत शरीर

           लाखो शरीर मे बसें है

आज तीनो बुलेट फिर सामने

    थामसा गया महाकाल पूछा

             अब?

 

[Translated By: Suvajit Mondal]

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